नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अध्यक्ष डॉ. मोहन भागवत ने हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर (Manipur) में शांति (Peace) बहाल करने की मांग की है। उन्होंने सोमवार को कहा कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है। इस मसले पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए। संघ प्रमुख के इस बयान को केंद्र की मोदी सरकार के लिए बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। वह संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग समापन समारोह में बोल रहे थे।
वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है
मोहन भागवत ने कहा कि इस बार भी हमने अपने लोकमत जागरण का काम किया है। वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है। अपने कर्तव्य को कुशलतापूर्वक करना जरूरी है। काम करें, लेकिन इसे मैंने किया, इसका अहंकार नहीं पालना चाहिए। जो ऐसा करता है, वही असली सेवक है। भगवान ने सबको बनाया है, उनकी बनाई दुनिया के प्रति अपनी भावना क्या होनी चाहिए। यह विचार करने योग्य है। सोच-समझकर जो समय के प्रवाह में विकृति आई हैं, उसे हटाकर यह जानकर कि मत अलग हो सकता है। तरीके अलग हो सकते हैं, सब अलग हो सकता है, लेकिन हमें इस देश को अपना मानकर उसके साथ भक्तिपूर्ण संबंध स्थापित करना चाहिए। इस देश के लोग भाई-भाई हैं। हमें इस बात को अपने विचारों और कामों में लाना होगा।
विश्व के सारे जीवन का आधार बनने वाले भारत को फिर से उस रूप में खड़ा करना है
संघ की शाखा में आने वाला व्यक्ति ऐसा हंसते-खेलते करता है। उसे ध्यान ही नहीं रहता है कि जो वो कर रहा है, उससे क्या फायदा हो रहा है। 10-12 साल के बाद जब वह पीछे मुड़कर देखता है तो खुद को परिपक्व और बदला हुआ पाता है। संघ यही काम करता है। ऐसा करते हुए हमें विश्व के सारे जीवन का आधार बनने वाले भारत को फिर से उस रूप में खड़ा करना है। जैसा वो पहले था, यह हमारा कर्तव्य है। यही हमारी तपस्या भी है। अपने कार्यक्षेत्र में जितने प्रकार का समाज रहता है। उन सब में अपने मित्र होने चाहिए। मित्र कुटंब होने चाहिए।
जहां समाज संघ की बात मान सकता है। वहां मंदिर, पानी और श्मशानघाट सबका एक होना चाहिए।
पर्यावरण के प्रति हमें समरसता का भाव रखना है
पर्यावरण के प्रति हमें समरसता का भाव रखना है। हम प्रयास करेंगे कि पानी बचाओ, हरियाली लाओ, पेड़ लगाओ और अपना घर हरित घर बनाओ। इसका मतलब जीवन उपभोग के लिए नहीं है। हमें समृद्धि चाहिए, लेकिन अय्याशी नहीं चाहिए, इसलिए हम मां लक्ष्मी की वंदना करते हैं। उपभोग की रेस में हम नहीं दौड़ते हैं। हम संयम रखते हैं। इस पर हमारा विश्वास है, इसलिए फिजूलखर्ची नहीं करते। बहुत ज्यादा ताम जाम की जरूरत नहीं है। सादगी से रहने की आदत डालनी चाहिए। इसका मतलब सभी जररूतें पूरी हों, लेकिन अतिरेक न हो।
चुनाव में एक-दूसरे को लताड़ना, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल और झूठ प्रसारित करना ठीक नहीं
मोहन भागवत ने लोकसभा चुनावों में प्रचार के तरीकों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि चुनाव में एक-दूसरे को लताड़ना, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल और झूठ प्रसारित करना ठीक नहीं है। यह अनुचित व्यवहार है। चूंकि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है।
भागवत ने कहा कि अगर कोई आपसे सहमत नहीं है तो उसे विरोधी कहना बंद कीजिए। विरोधी के बजाय प्रतिपक्ष कहिए। एक पक्ष होगा और उसके सामने अपनी बात रखने वाला प्रतिपक्ष होगा। संसद में किसी भी सवाल पर दोनों पहलू सामने आएं, इसके लिए इस तरह की व्यवस्था की गई है।
लोगों ने अपना जनादेश दे दिया है, हर चीज उसके हिसाब से होनी चाहिए
लोगों ने अपना जनादेश दे दिया है। हर चीज उसके हिसाब से होनी चाहिए। कैसी होगी? कब होगी? संघ इन सबमें नहीं जाता है, क्योंकि समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन होती है। भागवत ने डॉ. भीमराव अंबेडकर को याद कर कहा कि किसी भी बड़े बदलाव के लिए आध्यात्मिक चेतना को जागृत होना जरूरी है।