पालमपुर। धान की फसल पर बौना विषाणु रोग ने हमला (Attack) किया है। इससे धान (Paddy) पीले (Yellow) पड़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों (Scientist) ने धान कि फसल में काली धारीदार बौना विषाणु (Virus) के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए राज्य के धान किसानों के लिए जरूरी सलाह दी है। यह विषाणु विशेष रूप से निचले और मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है।
इस साल सिरमौर जिले की पांवटा घाटी और कांगड़ा जिले के जोगीपुर, रिहालपुर, राजोल, केटलू, पोहरा, थर्डी, रैत, ज्वाली और बरमाड़ जैसे कई स्थानों सहित प्रमुख धान उत्पादक क्षेत्रों से इसके प्रकोप की सूचना मिली है। यह रोग पौधों की वृद्धि को रोकता है। यदि इसका उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो फसल को भारी नुक्सान हो सकता है।
इस वायरस का फैलाव व्हाइटबैक्ड प्लांटहॉपर से होता है, जो कि एक कीट है। इस कीट को पारदर्शी अग्रपंखों, गहरे रंग की शिराओं और पंखों के जोड़ों पर एक विशिष्ट सफेद पट्टी से पहचाना जा सकता है। संक्रमित पौधों की ऊंचाई सामान्य से एक तिहाई या आधी हो जाती है तथा पत्तियां सीधी व संकरी, जड़ों हो जाती हैं। वहीं टहनियों का विकास रुक जाता है। वायरस का अत्यधिक प्रभाव होने पर पौधे सूख सकते हैं। इससे उपज में और गिरावट आ सकती है।
किसान अपने खेतों की नियमित रूप से निगरानी करें। वे धान के पौधों के आधार को धीरे से झुका सकते हैं और थपथपा सकते हैं। यदि कीट के शिशु या वयस्क मौजूद हैं तो उन्हें पानी की सतह पर तैरते हुए आसानी से देखा जा सकता है।
कीट का पता चलने पर किसानों को तुरंत कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार किसी भी अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इनमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 0.5 मिली/लीटर पानी, फिप्रोनिल 5 एससी @ 2 मिली/लीटर, डाइनोटेफ्यूरान 20 एसजी @ 0.4 ग्राम/लीटर, या फ्लोनिकैमिड 50 डब्ल्यूजी @ 0.3 ग्राम/लीटर शामिल हैं। बेहतर कवरेज के लिए स्प्रे को पौधों के आधार पर उपयुक्त नोजल, जैसे फ्लैट-फैन या खोखले शंकु, का उपयोग करके छिड़काव किया जाना चाहिए।
यदि आवश्यक हो तो छिड़काव को 15 दिनों के बाद दोहराया जा सकता है। किसानों को सतर्क रहने और कीटों की आबादी को नियंत्रित करने और अपनी धान की फसलों को और अधिक नुक्सान से बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई करने सलाह दी जाती है। तकनीकी सहायता के लिए किसान कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कीट विज्ञान विभाग से संपर्क कर सकते हैं।