शिमला (Shimla)। प्रदेश में 39 साल बाद महायज्ञ का आयोजन होगा। इसमें लाखों लोग भाग लेंगे। इसकी तैयारी तीन साल से चल रही है। इस आयोजन पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें एक व्यक्ति 9वीं बार मौत की घाटी को पार करेगा। यह महायज्ञ भुंडा के नाम से चर्चित है। ऊपरी शिमला की स्पैल वैली में देवता बकरालू महाराज के पवित्र स्थल पर इसका आयोजन होगा।

भुंडा यज्ञ से हिमाचल के लोगों की धार्मिक आस्था जुड़ी है। इससे पहले साल 1985 में इसका आयोजन हुआ था। जनवरी के पहले सप्ताह में होने वाला यह महायज्ञ लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। रोहड़ू और रामपुर क्षेत्र के लाखों लोग तीन दशकों के बाद इस महायज्ञ में शामिल होंगे। भुंडा महायज्ञ के लिए पांच बावड़ियों का पवित्र जल देवता बकरालू के मंदिर में पहुंच गया है।

स्पैल वैली से नौ गांवों दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनोली के ग्रामीणों ने अपने घरों में इस यज्ञ की मेजबानी के लिए पूरी तैयारी कर ली है। ग्रामीणों ने दूर-दूर के रिश्तेदारों को बीते एक महीने से निमंत्रण बांटने शुरू कर दिए थे। विधायक मोहन लाल ब्राक्टा भी मंदिर में पहुंच कर इसकी तैयारियों का जायजा ले चुके हैं।

स्पैल वैली के लोग तीन साल से इस महायज्ञ की योजना बना रहे थे। अप्रैल माह से मुंजी (खास प्रकार की घास) की रस्सी बनाने में लगे हैं। इसे एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी की ओर बांधा जाएगा। इस रस्सी पर बेडा फिसलते हुए एक छोर से दूसरे छोर तक जाएगा। इस रस्सी को नाग का प्रतीक माना जाता है।

जनवरी से भुंडा महायज्ञ के सार्वजनिक अनुष्ठान शुरू होंगे। इस दिन मेहमानों और देवताओं का स्वागत किया जाएगा। तीन जनवरी को देवता के मंदिर में शिखा पूजन मंदिर की छत पर पूजा-अर्चना के साथ होगी। चार जनवरी को मुख्य रस्म के तहत एक आदमी को जिसे बेडा के नाम से जाना जाता है, उसे रस्सी से बांध कर खाई पार करवाई जाएगी। पांच जनवरी को देवताओं की विदाई का कार्यक्रम उच्छड़ पाछड़ रहेगा।

गौर हो कि देवता महाराज बकरालू के प्रति लाखों लोगों की आस्था है। दलगांव, ब्रेटली, खशकंडी, कुटाड़ा, बुठाड़ा, गांवना, खोडसू, करालश और भमनोली गांव के लोग सीधे तौर पर देवता से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा रामपुर में रहने वाले कई लोगों की आस्था भी देवता महाराज बकरालू से जुड़ी हुई है।

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