बिलासपुर
रेशमकल्चर की तर्ज पर अब हिमाचल प्रदेश में ऐरीकल्चर (एरंड) को प्रोमोट किया जाएगा। इसके लिए रेशमपालन विभाग की ओर से एक प्रस्ताव राज्य सरकार की स्वीकृति के लिए प्रेषित किया गया है। से हरी झंडी मिलने के बाद ऐरीकल्चर को प्रोमोट करने के लिए कसरत तेज की जाएगी। बिलासपुर जिला में पिछले दो साल से चल रहा ट्रायल सक्सेस रहा है। खासियत यह है कि साल में छह से सात मर्तबा इसकी क्रॉप तैयार की जा सकती है। रेशमपालन विभाग हिमाचल प्रदेश के उपनिदेशक बलदेव चौहान ने बिलासपुर जिला में एरंड बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसकी क्रॉप के लिए यहां का वातावरण भी बेहद अनुकूल है। इसमें बीमारी लगने का भी कोई खतरा नहीं। एरंड का कीड़ा वन्य प्रजाति में आता है। वन्य प्रजाति होने के कारण इसमें बीमारी की संभावना न के बराबर रहती है। उन्होंने बताया कि एरंड खरपतवार के रूप में उगता है। जब हम एरंड के पत्तों को रेशम कीट को खिलाएंगे, तो इसकी वैल्यू एडिशन होगी।
रेशमकीट की तरह ही यह एक कौथा होता है और कोकून के रूप में तैयार होता है। इसका धागा बनता है और यह धागा ऊन की तरह गर्म होता है। ठंडे देशों में इसकी डिमांड कहीं अधिक है। बाजार में इसका रेट 2500 से लेकर 3000 रुपए तक प्रतिकिलोग्राम की दर से निर्धारित है। ऐरी की क्रॉप मात्र 20 दिन में ही तैयार हो जाती है। ऐसे में साल में छह से सात बार क्रॉप ली जा सकेगी। हालांकि शहतूत व रेशम के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत रहती है। (एचडीएम)
जर्मनी सहित अन्य ठंडे देशों में डिमांड अधिक
रेशमपालन विभाग के उपनिदेशक बलदेव चौहान के अनुसार जर्मनी सहित अन्य ठंडे देशों में कोकून की तरह तैयार होने वाले सिल्क की बहुत अधिक डिमांड है। भारत में एरंड को लेकर केवल नॉर्थ ईस्ट में ही काम हो रहा है। उत्तराखंड राज्य में भी इसका कार्य चल रहा है। ऐसे में सरकार परमिशन देती है, तो हिमाचल में भी ऐरीकल्चर को प्रोमोट किया जा सकेगा और यह व्यवसाय बेरोजगारों के लिए आर्थिक उन्नति का जरिया बनेगा।