दीप्ति अंगरीश
आज दुनिया का हर व्यक्ति आगे बढ़ रहा है। इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कोई सब स्वयं को विकसित करने की कवायद मेें दिन-रात भाग रहे हैं। माना भागने का मकसद है पैसे का सृजन। पर कभी इस ध्यान गया है कि इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया है। पीछे छूट गईं हैं हमारी जड़ें।
“न दीनं न च पापं न हरं न वा सदा। किंतु सच्चं धर्मं च सदा समाश्रयेत्॥”
यह श्लोक बताता है कि जो व्यक्ति धर्म और सत्य को अपने जीवन का आधार बनाता है, वह स्थिर और मजबूत रहता है, जैसे मजबूत जड़ें पौधे को हर परिस्थिति में स्थिर रखती हैं। यह श्लोक जीवन की जड़ों को मजबूत करने और सच्चे संबंधों की महत्ता को व्यक्त करता है। कभी सोचा है कि जड़ें नहीं होंगी, तो पौधा कितने दिन सांसें लेगा। ऐसे में जड़ों को मजबूत करना नितांत जरूरी है। संगमम इस जोड़ को मजबूतती जोड़ता है। यानी मिलान करवाता है अस्तित्व से। ऐसे में महत्वपूर्ण है संगमम, जो ज्ञान सृजन और जड़ों तक पुहंचाता है।
हाल ही में ऐसा संगमम हो रहा है काशी तमिल संगमम। ऐसे संगमम युवाओं के लिए आवश्यक हैं। कारण वे अपनी जड़ों, सांस्कृतिक विविधता-विरासत, सांस्कृतिक एकता जानें, समझें और इसे मजबूत करें। ऐसे में संगमम की तरह के आयोजन युवाओं में जागरूकता बढ़ाने और विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करने का उपयुक्त तरीका है। यहीं तक नहीं थमती संगमम की जरूरत।
संगमम का प्रमुख उद्देश्य है युवाओं में सांस्कृतिक और सामाजिक जागरूकता पैदा करना। इस मंच के माध्यम से युवा अपनी संस्कृति को समझने और उसे संजोने के साथ-साथ विविधता में एकता की ताकत को भी महसूस करते हैं। यह संवाद उन्हें यह सिखाता है कि विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं के बारे में जानकर हम अपनी पहचान को और मजबूत बना सकते हैं और एक दूसरे से जुड़ सकते हैं। यहीं नहीं थमती समागम की उपायोगिता युवा पीढ़ी के लिए। इसका अन्य प्रमुख उद्देश्य है दोनों क्षेत्रों की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करना।
भारत में विभिन्न संस्कृतियां और परंपराएं हैं। फिर भी सभी एक हैं। कारण उनका आधार है दृढ़ एकता है। संगमम इसी दृढ़ एकता को महसूस कराता है और दिखाता है कि भले ही हमारी सांस्कृतिक पहचान अलग हो, लेकिन हम सब एक ही धारा में बहते हैं। असल में किसी तरह के संगमम हमें अपनी विविधता को स्वीकारने और उसे अपनी ताकत बनाने का तरीका सिखाता है। दसअसल संगमम के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों, कला रूपों और परंपराओं का आदान-प्रदान होता है, जो एक दूसरे की समझ को बढ़ाता है और समाज में समरसता को बढ़ावा देता है। यह मंच युवाओं को अलग-अलग कला रूपों जैसे संगीत, नृत्य, शिल्प और साहित्य के माध्यम से एक दूसरे की संस्कृतियों को जानने और समझने का अवसर देता है। इस प्रकार यह कार्यक्रम संवाद और सहिष्णुता को बढ़ावा देता है, जिससे विभिन्न समुदायों के बीच आपसी सम्मान और सामंजस्य का वातावरण बनता है।
असलियत की धरातल में संगमम न केवल सांस्कृतिक संवाद का मंच है, बल्कि यह युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने और अपने समाज तथा राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का अहसास भी कराता है। यह उन्हें यह सिखाता है कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देना और उसे आगे बढ़ाना, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। संगमम युवाओं को न केवल प्रेरित करता है, बल्कि उन्हें अपने देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने में मदद करता है।
अब बारी आती हैं युवाओें की। उन्हें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा। उन्हें तलाश ना होगा जहां उनकी जड़ों का संगमम कहां हो रहा हैै। कारण संगमम एक ऐसा मंच है जो विभिन्न क्षेत्रों के बीच संवाद स्थापित करता है, सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देता है और युवाओं में जागरूकता उत्पन्न करता है। यह युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समझने, उसे संजोने और सम्मान देने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार के संवादों को बढ़ावा देने से हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं, जो अपनी विविधताओं में भी एकता को महत्व देता है और हर युवा अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए राष्ट्र के विकास में योगदान करता है। अब युवाओं को संगमम से जुड़ना होगा।
-लेखिका पत्रकार हैं।