धर्मशाला
ये सवाल धर्मशाला के तपोवन में हुए विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद उठे हैं। दरअसल यहां पांचों दिन विपक्ष के तेवर काफी कड़े रहे और गारंटियों को लेकर सरकार पर खूब सियासी वार हुए। पहले दिन भाजपा के विधायक गारंटियों का चोला पहन कर सदन की ओर बढ़े। वहीं दूसरे दिन सूखे गोबर की टोकरियां लेकर विधानसभा परिसर में आए और प्रदर्शन किया। तीसरे दिन विपक्ष के विधायक ग्वालों के वेश में दूध लेकर आए। उन्होंने सदन के बाहर दूध बेचा और खरीदा। चौथे दिन भाजपा के विधायक गारंटियों का चोला पहनकर एवं हाथों में डिग्रियां लेकर आए और सदन के बाहर डिग्रियां जलाईं।
अंतिम दिन भाजपा के विधायक हाथों में सेब के डिब्बे लेकर आए। उन्होंने सदन में जाने पूर्व सांकेतिक तौर पर सेब बेचे। इसी तरह वॉकआउट के जरिए भी अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज करवाई। इस सबके बीच भगवा दल में एक चेहरा बहुत ही कम दिखा। वह कोई और नहीं, भाजपा के उपाध्यक्ष और कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक पवन काजल थे। वह न तो किसी प्रदर्शन में शामिल हुए और न ही वॉकआउट के दौरान खुलकर सामने आए। यदि कहीं वह दिखे भी तो औपचारिकताभर के लिए। विधानसभा में उन्होंने पहले की भांति गगल एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का विरोध किया, मगर वह इस बार भी गगल एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के मसले पर अकेले ही दिखे। पवन काजल के इस रुख को लेकर जितने मुंह, उतनी बातें हुईं। जहां कुछ लोग इस रुख को पवन काजल का भाजपा से मोहभंग होना बताते रहे, वहीं कुछ ने इसे गगल एयरपोर्ट के मसले पर साथ न मिलने पर नाराजगी से जोड़ दिया। कारण चाहे जो भी हो, पवन काजल का प्रदर्शनों और वॉकआउट से परहेज करना भगवा दल के लिए किसी सियासी डेंट से कम नहीं है, जो बाहरी नहीं, आंतरिक चोट से पड़ा है।
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